क्या पारंपरिक और आस्था से जुड़े मंत्र,तंत्र,यंत्र के उपाय ज्योतिष शास्त्र का हिस्सा है?

 प्रश्न: क्या पारंपरिक और आस्था से जुड़े मंत्र,तंत्र,यंत्र के उपाय ज्योतिष शास्त्र का हिस्सा है? 


उत्तर:

               यह मान्यता की ज्योतिष शास्त्र उपाय देता है यह गलत है। हमारी संस्कृति और सभ्यता प्रश्न और उत्तर की खोज से आगे बढ़ी है, हमारी संस्कृति में ईश्वर को ग्रहों,तारों और नक्षत्रों का नियंता माना गया है, और उपाय के रूप में उस ईश्वर की ही विविध स्वरूपों में पूजा की जाती है, मंत्र उस की आराधना का स्वर स्वरूप है, जो आकाश और वायु को प्रभावित करता है। तंत्र उसकी पूजा, अनुष्ठान और साधना प्रणाली है, जो अग्नि और जल तत्व को प्रभावित करता है,और यंत्र उसका प्रतीकात्मक आकार है,जो पृथ्वी तत्व को प्रभावित करता है। और नवग्रहों को ईश्वर का विग्रह मान कर मंदिरों में उसकी स्थापना और पूजन का विधान है। सार यह है कि ग्रह कभी खराब या ठीक नहीं होते.. हमारे अस्तित्व का मूल पांच तत्व है और पांच तत्व  के संतुलित होने से उपाय होते है।वह पांच तत्व आयुर्वेद,ध्यान और संतुलित जीवनशैली से भी ठीक हो सकते है,  इसका अवकाश के ग्रहों से संबंध केवल प्रतीकात्मक है। टोने टोटके या वशीकरण तो आध्यात्म और विज्ञान से बहुत दूर सिर्फ इच्छा पूर्ति के लिए किए जाने वाला अंधविश्वास से युक्त कर्म है। 

           अगर आप समझे तो ईश्वर का अस्तित्व और आत्मा के होने का विचार हिन्दू दर्शन ( फिलोसॉफी)  यानी कि छह दर्शन और उपनिषद का विचार है, तो ईश्वर एक दार्शनिक विचार ( Philosophical Thought) से बढ़कर और कुछ नहीं।

        जिसको मानने और श्रद्धा पूर्वक स्वीकार करने के लिए बहुत सारे मंत्र ,तंत्र,यंत्र,पूजा,विधि,विधान, कथा, चमत्कार,मंदिर , मठ और आश्रम बनाए गए है। और उसका बिना प्रश्न किए और अपने मूल दर्शन को समझे बिना स्वीकार किया गया है। नास्तिक दर्शन भी है, जिसमें प्रमुख जैन, बौद्ध और चार्वाक है, जो ईश्वर या परमात्मा के अस्तित्व का इनकार करते है। चलिए प्रमुख नास्तिक दर्शन जैन दर्शन की ही बात करते है, बहुत सारे जैनों को स्यादबाद और अनेकांतवाद का सिद्धांत मालूम नहीं, जो जैन विचार का मूल है, वह सिर्फ श्वेतांबर, दिगंबर जैसे पंथ में उलझे हुए उसकी प्रणालियों को मानते है, मूल जैन विचार आत्मा को स्वीकार करता है, परमात्मा को नहीं। जैन शास्त्र और जैन दर्शन के मूल विपरीत दिशा में है, अब इसी तरह का भ्रष्टाचार हिन्दू और बौद्ध विचार और दर्शन के साथ भी हुआ है।  जैन दर्शन अभय,अहिंसा और संयम के आधार पर विचारों के वैविध्य को स्वीकार करता है, ज्योतिष शास्त्र के प्रति यह दर्शन तटस्थ है, तथागत गौतम का बौद्ध दर्शन ज्योतिष को पाखंड मानता है।

      और विज्ञान ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न लगाता है। तो यह मानना के सांस्कृतिक उपाय विज्ञान है यह भी गलत है। विज्ञान ने अवकाश और ब्रह्माण्ड का अध्ययन करने के बाद यह साबित किया है कि ईश्वर या ऐसी किसी भी शक्ति का ब्रह्माण्ड की रचना,संतुलन और विस्तार में कोई हाथ नहीं है, विज्ञान व्यक्तिगत जीवन पर पडने वाले अवकाश पिंडों के प्रभाव को भी प्रमाण के साथ अस्वीकार करता है, विज्ञान ने जो आज साबित किया है वह पुराने उत्तरों से बिल्कुल विपरीत है। इसी लिए ग्रहों के नाम पर दिए जाने वाले धार्मिक और आस्था जन्य उपाय किसी ग्रहों को ठीक करने के लिए नहीं, केवल ईश्वर की आराधना के लिए है, जो ईश्वर के अस्तित्व का श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते है,उनको इन उपायों से कुछ शांति मिल सकती है। जो आज का प्रगतिशील मानस है और प्रश्न करने में विश्वास रखता है उनके लिए मंत्र,तंत्र और यंत्र के उपाय केवल पुरानी अवधारणा है।


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